उत्तराखण्ड स्थापना दिवस: Uttarakhand Foundation Day 2025
उत्तराखण्ड स्थापना दिवस
उत्तराखण्ड स्थापना दिवस हर वर्ष 9 नवम्बर को पूरे राज्य में हर्ष और गर्व के साथ मनाया जाता है। यह वह ऐतिहासिक दिन है जब वर्ष 2000 को उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों को अलग कर भारत के संघीय ढाँचे में एक नए राज्य का गठन किया गया। उत्तराखण्ड की स्थापना एक लंबी लोकतांत्रिक प्रक्रिया, व्यापक जनसंघर्ष, सामाजिक लामबंदी और संवैधानिक निर्णय का परिणाम है।
स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में लंबे समय तक समुचित विकास का अभाव महसूस किया गया। कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ, प्रशासनिक उपेक्षा, शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं की कमी तथा रोजगार के सीमित अवसरों ने स्थानीय जनता में असन्तोष को जन्म दिया। इन परिस्थितियों के कारण अलग राज्य की अवधारणा धीरे-धीरे जनमानस में गहराई से स्थापित होने लगी। प्रशासनिक स्तर पर देरी और संसाधनों के असंतुलित वितरण के कारण राज्य की मांग बार-बार उभरकर सामने आई।
राज्य गठन की आवश्यकता और मांग
उत्तराखण्ड के लोगों का मानना था कि पर्वतीय समस्याओं को बेहतर ढंग से तभी समझा और हल किया जा सकता है जब शासन व्यवस्था स्थानीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप हो। इस विचार ने अलग राज्य की मांग को मौलिक आधार दिया। जनता को यह महसूस हुआ कि स्थानीय संसाधनों का उपयोग, पर्यावरण संतुलन, पर्वतीय कृषि, आपदा प्रबंधन और बुनियादी ढाँचा विकास विशेष ध्यान की मांग करता है।
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का विकास
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन की प्रारम्भिक जड़ें 1970 के दशक में दिखाई देती हैं। क्षेत्रीय स्तर पर उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का गठन इस आन्दोलन को राजनीतिक आधार देता है। बाद के वर्षों में यह आन्दोलन जनआन्दोलनों, धरनों, ज्ञापन सम्मेलनों और विरोध प्रदर्शनों के रूप में आगे बढ़ा। समाज के हर वर्ग ने इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, जिनमें विद्यार्थी, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, किसान, युवा और महिलाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। 1990 के दशक में यह आन्दोलन कई जिलों में तीव्र हो उठा, जिसने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रमुखता प्रदान की।
आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन की एक महत्वपूर्ण विशेषता महिलाओं की अभूतपूर्व भागीदारी रही। पानी, जंगल और जमीन की समस्याओं से सीधे प्रभावित रहने के कारण महिलाओं ने आंदोलन को भावनात्मक और व्यावहारिक शक्ति प्रदान की। चिपको आन्दोलन जैसी पहलों ने भी समाज में जागरूकता पैदा की और पर्यावरणीय चेतना को मजबूती दी।
मसूरी गोलीकांड और उसका प्रभाव
2 सितम्बर 1994 को मसूरी में प्रदर्शन के दौरान हुई पुलिस गोलीबारी आन्दोलन के लिए एक निर्णायक मोड़ बनकर उभरी। इस घटना ने पूरे प्रदेश और देश में आक्रोश की लहर दौड़ा दी। शांतिपूर्ण आन्दोलनकारियों पर की गई गोलीबारी ने इस मुद्दे को व्यापक जनसहानुभूति दिलाई और मीडिया कवरेज के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर तक उठाया।
रामपुर तिराहा कांड का महत्व
2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में दिल्ली कूच कर रहे आन्दोलनकारियों पर पुलिस द्वारा की गई हिंसा ने आन्दोलन को ऐतिहासिक तीव्रता प्रदान की। आरोप लगे कि न केवल गोलीबारी हुई बल्कि आन्दोलनकारियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। इस घटना ने गुजरात, दिल्ली और कई अन्य राज्यों में भी विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया और अलग राज्य की माँग को निर्णायक दिशा मिली।
विधेयक और संवैधानिक प्रक्रिया
वर्ष 1997 में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने पृथक राज्य निर्माण प्रस्ताव को औपचारिक स्वीकृति दी। इसके बाद केंद्र सरकार ने राज्य गठन की प्रक्रिया प्रारम्भ की। 27 जुलाई 2000 को लोकसभा में उत्तरांचल राज्य विधेयक प्रस्तुत किया गया। 1 अगस्त 2000 को यह विधेयक लोकसभा में पारित हुआ और 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा में भी इसे स्वीकृति मिली। राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदन मिलने के बाद यह विधेयक कानून का रूप ले सका और 9 नवम्बर 2000 को आधिकारिक रूप से उत्तरांचल राज्य का गठन हो गया। बाद में जनभावनाओं के अनुरूप 1 जनवरी 2007 को राज्य का नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।
उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति और प्रशासन
उत्तराखण्ड एक पर्वतीय राज्य है जिसके दो मुख्य भौगोलिक क्षेत्र गढ़वाल और कुमाऊँ के नाम से जाने जाते हैं। वर्तमान में इसकी अस्थायी राजधानी देहरादून है जबकि उच्च न्यायालय नैनीताल में स्थित है। राज्य में कुल तेरह जिले हैं। भाषाई दृष्टि से यहाँ हिन्दी, कुमाऊँनी, गढ़वाली और जौनसारी बोली जाती हैं। पर्वतीय जीवनशैली और पारंपरिक संस्कृति इस राज्य को विशेष पहचान प्रदान करती है।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
उत्तराखण्ड को देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यहाँ चारधाम यात्रा के प्रमुख स्थल गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ स्थित हैं। इसके अतिरिक्त हरिद्वार में लगने वाला महाकुंभ मेला अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखता है। यहाँ की लोकनृत्य परम्पराएँ, वाद्य यंत्र, पारम्परिक वस्त्र, पर्व और मेले राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं।
पर्यटन, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था
उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था में पर्यटन प्रमुख स्थान रखता है। साहसिक पर्यटन जैसे ट्रैकिंग, रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग और पर्वतारोहण राज्य की पहचान के महत्वपूर्ण आयाम हैं। पर्वतीय कृषि, बागवानी, हर्बल और औषधीय पौधों का उत्पादन तथा जलविद्युत परियोजनाएँ भी आर्थिक आधार को मजबूत करती हैं। हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए पर्यावरणीय जागरूकता इस राज्य के विकास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्थापना दिवस का आयोजन
स्थापना दिवस पर पूरे राज्य में सांस्कृतिक कार्यक्रम, पारम्परिक लोकनृत्य, शहीद आन्दोलनकारियों को सम्मान, विकास योजनाओं की घोषणाएँ, रैलियाँ और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। स्कूल और कॉलेजों में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ताकि युवा पीढ़ी को आन्दोलन के महत्व की समझ विकसित हो सके।
स्थापना दिवस का महत्व
उत्तराखण्ड स्थापना दिवस केवल एक उत्सव नहीं बल्कि एक स्मृति, एक संघर्ष और एक संकल्प का प्रतीक है। यह दिन उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है जिन्होंने राज्य की स्थापना के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। यह दिवस नागरिकों को विकास, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक गर्व की प्रेरणा देता है। उत्तराखण्ड का गठन भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता, जनआन्दोलन की शक्ति और संवैधानिक प्रक्रिया की सफलता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। स्थापना दिवस हमें याद दिलाता है कि पहाड़ी क्षेत्रों का विकास, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सांस्कृतिक विरासत का पोषण हम सभी का दायित्व है।