अमोल मजूमदार: India Women’s World Cup Winning Coach
अमोल मजूमदार: इंतज़ार से इज़्ज़त तक का सफर
24 फरवरी 1988, मुंबई का आज़ाद मैदान। दोपहर की तीखी धूप, भीड़ का शोर और मैदान के बीच दो किशोर इतिहास लिख रहे थे। चौदह वर्षीय सचिन तेंदुलकर और सोलह वर्षीय विनोद कांबली अपनी बल्लेबाज़ी से स्कोरबोर्ड की सांसें रोक चुके थे। 664 रनों की बेमिसाल साझेदारी ने विश्व रिकॉर्ड रचा और क्रिकेट जगत में हलचल मचा दी।
लेकिन इसी इतिहास के ठीक बाहर एक और युवा था, पैड और हेलमेट पहने, अपनी बारी का इंतजार करता हुआ। उसे उस दिन खेलने का मौका नहीं मिला। शायद किस्मत ने वहीं से उसके लिए एक अलग अध्याय तय कर दिया। वह इंतज़ार सीख रहा था, और यह कला उसकी पहचान बनने वाली थी। इस बच्चे का नाम था, अमोल मजूमदार।
शिवाजी पार्क की मिट्टी और धैर्य की शिक्षा
मुंबई का शिवाजी पार्क क्रिकेट की जन्मस्थली जैसा है। वही वातावरण, वही सपने। इसी जगह अमोल ने महान कोच रामाकांत आचरेकर की अनुशासित निगरानी में क्रिकेट सीखा। हर सख़्त निर्देश, हर extra रन दौड़, धीरे-धीरे उसके चरित्र में धैर्य और संतुलन रोप रहे थे।
घरेलू क्रिकेट का शिखर
मुंबई के लिए अपने प्रथम-श्रेणी क्रिकेट के पहले ही मैच में मजूमदार ने 260 रन जड़े। इसके बाद लगभग दो दशक तक उन्होंने मैदान पर निरंतरता, निपुणता और निखार दिखाया।
11,000 से अधिक फर्स्ट-क्लास रन
30 शतक
लगभग 48 का औसत
ये आंकड़े किसी भी खिलाड़ी को राष्ट्रीय टीम का टिकट दिलाने के लिए पर्याप्त माने जाते। लेकिन मजूमदार के लिए ऐसा नहीं हुआ। हर सीज़न के अंत में उन्हीं के बारे में कहा जाता, अगला मौका इन्हीं का है। पर वह कॉल कभी नहीं आया।
बिना शिकायत के खेलने का साहस
कई युवा क्रिकेटर कम मौके पर टूट जाते हैं। लेकिन मजूमदार मुस्कुराते रहे, बातचीत में विनम्र रहे, खेलते रहे। उन्होंने कभी विवाद नहीं किया, कभी उँगली नहीं उठाई। वह उस कला में माहिर हो चुके थे जो बहुत कम खिलाड़ियों के पास होती है, लम्बा इंतज़ार।
2014 में उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कहा, मगर खेल से दूरी नहीं बनाई।
सोच को आकार देने वाला कोच
खेल के बाद मजूमदार ने कोचिंग का रास्ता चुना। मुंबई, आंध्र और राजस्थान रॉयल्स के साथ काम करते समय उन्होंने सिर्फ शॉट सुधारना नहीं सिखाया, बल्कि सोच सुधारने पर जोर दिया। उनका एक सिद्धांत था, दुनिया भले भूल जाए, तैयारी कभी मत भूलो।
भारतीय महिला टीम की बागडोर
2023 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम का कोच नियुक्त होने पर कई सवाल उठे। आलोचकों ने तंज कसा, जिसने इंडिया के लिए नहीं खेला वह टीम को कैसे संभालेगा। मजूमदार ने उसी शांत मुस्कान से जवाब दिया, जिसमें हमेशा शब्दों से ज्यादा धैर्य रहता है।
2025 वर्ल्ड कप: टीम का जागना
टूर्नामेंट की शुरुआत उम्मीदों के खिलाफ रही। मैच हारे, दबाव बढ़ा, आलोचना तेज हुई। लेकिन कोच ने टीम के आस-पास बस एक वाक्य हवा में छोड़ दिया, हम अंत अच्छा करते हैं, क्योंकि हम ऐसे ही हैं। यही विश्वास खिलाड़ियों की नसों में उतर गया।
स्मृति मंधाना की टाइमिंग, हरमनप्रीत कौर का आक्रामक नेतृत्व, दीप्ति शर्मा की सटीकता, शफाली वर्मा का बेखौफ खेल और टीम की सामूहिकता अचानक तेज हुई। फॉर्म नहीं बदला था, आत्मविश्वास जागा था। भारत ने फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हराकर विश्व कप उठा लिया।
एक मुस्कान, जो सब कह गई
फाइनल के बाद कैमरे खिलाड़ियों के पीछे दौड़ते रहे, लेकिन डगआउट के किनारे खड़े उस शांत चेहरे को दुनिया ने फिर देखा। बाँहें मोड़े, आँखें नम, होंठों पर वह पुरानी मुस्कान। यह जीत सिर्फ एक कप नहीं थी। यह इंतज़ार की जीत थी, धैर्य की जीत थी।
अमोल मजूमदार ने शायद कभी भारतीय टीम की नीली जर्सी नहीं पहनी, लेकिन जब भारत महिला विश्व चैंपियन बना, तब उन्होंने उस जर्सी को नई प्रतिष्ठा दिलाई। उनका सफर बताता है कि हर महान कहानी को रोशनी नहीं चाहिए, उसे बस सही समय चाहिए।
अमोल मजूमदार वह हैं जिन्होंने ज़िंदगी भर इंतज़ार किया और अंत में वक़्त को इंतज़ार करवाया।